Wednesday, September 5, 2018

कविता - आज का नौजवान

जिंदगी की दौड में युवा भी खड़ा है
दुसरो से कहीं ज्यादा खुद से लड़ा है,
जमाने रूसवाई का तमगा जड़ा है
फिर भी खुद की करने पर अड़ा है।
                 ख़ुदी में होकर अंधा रहता अनजान
                 देखो हमारा  आज का नौजवान।।

पाश्चात्य तीर रखे तरकश में
लक्ष्य - भेदन का दावा है,
आधुनिकता की दुहाही नही यह
हमारी संस्कृति पर हुआ धावा है।
                 स्वदेशी भोग और विदेशी गुणगान
                 देखो हमारा आज का नौजवान।।

उसूलो का कर सौदा
फूहड़ता से करार है,
वक़्त से  महरूम
गैर का तलबगार है।
                उज्वल भविष्य हो हमारा कैसे लू मान
                 देखो हमारा आज का नौजवान।।
                                                           - pk dahiya

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