Sunday, August 26, 2018

कविता - सच्चा 'झूठ'

कद्र नही है इंसान की
बहरूपिया जमाना है,
मतलबों का लोहा अब
समाज ने भी  माना है।

झूठ का है बोलबाला
फ़रेबी की हुई चाँदी,
सच्चे का मुँह काला
क्या करे अब ग़ांधी।

सच्चा सौदा मंदी में
चेहरा नही मुखोटा है,
रिश्तो की दुकनदारी में
अब मुनाफा मोटा है।

निष्पक्ष लोग  लुप्त हुए
बेइज्जत अब करते न्याय,
चमचागिरी बनी कूटनीति
घूसखोरी से भारी आय।

बिना स्वार्थ नही मिलते
अब जग में  मीठे बोल,
बिकता है इमान भी
गर सही करोगे मोल।

इमानदारी की लुटती लाज
चालबाजी पर हुआ  नाज,
मेहनती लोगो की कद्र नही
सच बन गया  मोहताज।

मौकापरस्ती मौसम आया
झूठा दावा   झूठी शान,
सच्चाई की दलाली में
खो गया है स्वाभिमान।।
                             -pk dahiya



Wednesday, August 22, 2018

कविता - "अटल बिहारी वाजपेयी"

टूट गए दिल के शीशे , उस जिंदादिल इंसान के
जिसमे निहारकर हम, खुद को संवारा करते थे।
तुम सच्चे पहरेदार थे,  भारत माता की आन के
उसी शख्सियत को हम, खुद में उतारा करते थे।

तेरी वीर कविताओं का रस पीकर, हम नादान बड़े हुए
तुम भीष्म पितामहः राजनीति के, अनेको युद्ध लड़े हुए।
पोखरण संबंधी प्रयासों से, हम बुलंद खड़े हुए
तेरे हिंदी प्रेम से ही , यूएनओ में झंडे गड़े हुए।

तुम स्वाभिमानी, तुम भारतरत्न
चाहे  कारगिल का वो रण।
गृहस्थ जीवन को ठोकर मार
तुमने आजीवन  तपाया तन।

खामोशी से  विदा हो चले
अखंड़ भारत का सपना देकर,
काश फिर लौट आओ तुम
हमे ऐसे बेसहारा देखकर।

हमे  जीना सिखाकर
तुम तो दुनिया छोड़ चले,
खुद एक महफ़िल थे तुम
आज यूं विदा हो चले।।
                             - pk dahiya

      

कविता - एक " माँ "

ज़िन्दगी ने थका सा दिया है मुझे बस तेरे खातिर ही जी रही हूँ  मैं, हर गम को  सीने में दफन कर आसुंओ का सैलाब पी रही हूँ मैं। संघर्षों ने ...