Friday, September 7, 2018

कविता - एक " माँ "

ज़िन्दगी ने थका सा दिया है मुझे
बस तेरे खातिर ही जी रही हूँ  मैं,
हर गम को  सीने में दफन कर
आसुंओ का सैलाब पी रही हूँ मैं।

संघर्षों ने तोड़ सा दिया है मुझे
बस तेरा घर जोड़ रही हूं मैं,
तुझे चलना सिखाकर भी
तेरे ही पीछे दौड़ रही हूं मैं।

हालातों ने हरा सा दिया है मुझे
तेरे लिए खुशियां जुटा रही हूं मैं,
तेरे उज्ज्वल भविष्य की खातिर
अपना सबकुछ लुटा रही हूं मैं।

तेरे चेहरे की खुशी के लिए
अपने दुख छिपा रही हूं मैं,
तुझे काटों की चुभन नही
खिला फूल दिख रही हूं मैं।

तू आज खामोश क्यूं है
सबकुछ समझ रही हूं मैं,
वहम न पालना मन में
कोई मजबूर नही हूं मैं।

मुझे नही तुझे जरूरत है मेरी
कश्ती का किनारा रही हूं मैं,
मुझे अकेला ना समझना
किसी का सहारा रही हूं मैं।।
                                   - pk dahiya



Thursday, September 6, 2018

कविता - "फैशन की मार"

भीतर से जैसे बाहर से वैसे,
लुप्त हो गए लोग कुछ ऐसे।

सादा जीवन उच्च विचार
सादगी का देखा दौर था,
नैतिकता पर  खरा उतरा
वो शख्स ही कोई और था।

दिखावा और आकर्षक
झूठे गर्व के है लक्षण,
केश वेश व आभूषण
फैशन अब बना प्रदर्शन।

कलाकारों का  कला बोध
समाज का यह सौंदर्य बोध,
फैशन की मर्यादा  लांघकर
सभ्यता की जड़े न देना खोद।

फैशन की अंधी रफ्तार में
फूहड़ता का जहर न पीना,
पुरानी चीजो को सजोने की आदत है इसे
मेरे मुल्क को इतनी बड़ी  सजा ना देना।

युवा वर्ग से  भरी आह्वान
संस्कारो से होता जग में सम्मान,
फैशन से ना  नैया पार होगी
भारत के स्वाभीमान की हार होगी।।
                                             - pk dahiya




Wednesday, September 5, 2018

कविता - आज का नौजवान

जिंदगी की दौड में युवा भी खड़ा है
दुसरो से कहीं ज्यादा खुद से लड़ा है,
जमाने रूसवाई का तमगा जड़ा है
फिर भी खुद की करने पर अड़ा है।
                 ख़ुदी में होकर अंधा रहता अनजान
                 देखो हमारा  आज का नौजवान।।

पाश्चात्य तीर रखे तरकश में
लक्ष्य - भेदन का दावा है,
आधुनिकता की दुहाही नही यह
हमारी संस्कृति पर हुआ धावा है।
                 स्वदेशी भोग और विदेशी गुणगान
                 देखो हमारा आज का नौजवान।।

उसूलो का कर सौदा
फूहड़ता से करार है,
वक़्त से  महरूम
गैर का तलबगार है।
                उज्वल भविष्य हो हमारा कैसे लू मान
                 देखो हमारा आज का नौजवान।।
                                                           - pk dahiya

कविता - एक " माँ "

ज़िन्दगी ने थका सा दिया है मुझे बस तेरे खातिर ही जी रही हूँ  मैं, हर गम को  सीने में दफन कर आसुंओ का सैलाब पी रही हूँ मैं। संघर्षों ने ...